अपने घरों में बुजुर्गों को बेहतरीन से बेहतरीन सुख-सुविधाएं दीजिए,
ताकि वे जीवन के आखिरी पड़ाव में दुनिया के उत्कर्ष का आंनद ले सकें।
आज जो तकनीक, योजनाएं, सुख-सुविधाएं हम उपयोग कर पा रहे हैं,
ये उनके द्वारा, उनके समय में किए गए त्याग और संघर्षों का परिणाम है।
भूरा
भूरा खड़ा चौराहे पे
झुण्ड को हैं हांकते।
काला चश्मा कैप लगा
गले में गमछा डालके।
हाथ में तीखा कढ़ा पहनें
ओल्ड बुलैट हुंकार भरे
दंभ भरे, गुल छर्रे उड़े
पुड़िया थूके कश लगे।
छुटभैयों की सपोर्ट से
सत्ता की बकैती करें
कानून को ठेंगा दिखा
प्रशासन से वो ना डरे।
मादर फादर गाली बके
असलहा बंदूक छुरी रखे
डण्डा लिए, झण्डा लिए
क्रान्ति की ज्वाला लिए,
सिर पर साफा़ बांधें
जनहित की वो बात करे।
भूरा खड़ा चौराहे पे
झुण्ड को हैं हांकते।
काला चश्मा कैप लगा
गले में गमछा डालके।
बुनियाद
जो पूर्व थे आरब्ध में
वे इतिहास हो गए हैं।
दो गज तक भीतर
अब दफन हो गए हैं।
जो बीज पूर्वजों ने थे सींचे
बढ़कर अब जड़ हो गए हैं।
और वे ओझल होकर अब
यथार्थ को भी सींच रहे हैं।
पर जड़ों ने न कभी किया मान
न ही वे बताते–फिरते पहचान।
क्यूंकि वे जानते है भली भांति
ये जो आज है वे कल होंगे।
आज जो लहलहा रहे हैं ऊपर
कल जमींदोज भी होंगे।
और ये जो अंकुर पड़े है ऊपर
वे और भी भीतर जाएंगे।
और ऊपर फल–फूल लिए
फिर से नए वृक्ष मुस्कुराएंगे।
अपनी जड़ों का हम भी
आशीष सदा पाएंगे।
उनके त्याग और संघर्षो को
कभी न हम भुलाएंगे।
अंत में उनकी तरह
हम भी जड़ हो जाएंगे।
ऋण
मददगारों ने मदद का विचार त्याग दिया
तो सूदखोरों ने ब्याज का धंधा चलाया।
जब हरामखोरों ने उधार न चुकाया तो
तो जरूरतमंदों को ऋण न मिल पाया।
माँ भारती
है यही सुख जन्म जन्म का,
हर जन्म मिले माँ भारती।
शीश झुका चरणों में उसके,
करूं मैं निशिदिन आरती।
ले नित्य आशीष उसका,
मैं सदा चरण वंदन करूं।
जब तक प्राण रहे तन में,
मैं मातृभक्ति करता रहूं।
माँ के आंचल में रहकर मैं,
अपने भाग्य पर इतराऊं।
रहूं दूर जब ओझल उससे,
खुद को अभागा सा पाऊं।
उसकी आंखों की आभा में,
मैं अपने भाग्य को चमकाऊं।
माँ की सेवा से वंचित रहूं,
इतना भी दूर कभी न जाऊं।
नाम-बदनाम
ऊपर इतना चढ़ों के लोग
तुम्हें गिराना चाहें।
नीचे इतना गिरो के लोग
तुम्हारे साथ गिरना चाहें।
नाम ऐसे कमाओ के लोग
तुम्हें बदनाम करना चाहें।
बदनाम ऐसे बनो के लोग
तुम्हारे साथ बदनामी चाहें।
हेकड़ी
भ्रष्ट, बेईमान, हरामखाऊ, ये साले रिश्वतखोर धूर्त
ये दो कौड़ी की औकात भी न रखने वाले रईसजादे
इतने बेशर्म है और नासमझ बनते है
जैसे ये सही गलत बातों से परे है,
और अनभिज्ञ है अच्छाई और बुराई से,
इनका मानवता से कोई वास्ता नहीं है
इसीलिए इनकी हेकड़ी निकालने और
अकल ठिकाने लाने के लिए पारदर्शी कानून चाहिए।
रोते हुए मर्द
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
दु:खों से, भरा है मन
सूक्ष्म है उनका रूदन
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
किसे जाकर घाव दिखाएं?
किसके हाथों मरहम कराएं?
यहां संवेदना का,कोई अर्थ नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
सख़्त मर्द रोते नहीं
अपना दर्द जताते नहीं
इनमें सौम्यता का भाव नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
तलाश
फिरते हैं चमन में खुशबू तलाशते
नजानें वो कौन सी बहारों में होगी।
दिखती है जितनी आसान ज़िंदगी
उनके बगैर फिर गवारा न होगी।
गुज़र रहा है वक्त उनकी तलाश में
बीत रही हर घड़ी मौसम बहार की।
अंधेरों में, कहां आसां हैं? जिंदगी
आने से उनके ये रोशन तो होगी।
जीवन है इक खेल
स्टेडियम में (समाज में)
दर्शकगण (आपके करीबी)
आनंद ले रहे है,
तालियां बजा रहे है
और उत्सुक होकर
प्रतीक्षा कर रहे हैं
खिलाड़ी के (आपके)
खेल में (जीवन में)
प्रदर्शन (गिरने-संभलने) का।