रोते हुए मर्द



आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

दु:खों से, भरा है मन
सूक्ष्म है उनका रूदन
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

किसे जाकर घाव दिखाएं?
किसके हाथों मरहम कराएं?
यहां संवेदना का,कोई अर्थ नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

सख़्त मर्द रोते नहीं
अपना दर्द जताते नहीं
इनमें सौम्यता का भाव नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

तलाश


फिरते हैं चमन में खुशबू तलाशते
नजानें वो कौन सी बहारों में होगी।
दिखती है जितनी आसान ज़िंदगी
उनके बगैर फिर गवारा न होगी।

गुज़र रहा है वक्त उनकी तलाश में
बीत रही हर घड़ी मौसम बहार की।
अंधेरों में, कहां आसां हैं? जिंदगी
आने से उनके ये रोशन तो होगी।

बकवास


क्या बकवास है।
“X ,Y को अहमियत दे रहा है, पर Y की नज़र में X की कोई अहमियत नही।
Y, Z को अहमियत दे रहा है पर Z की नज़र में Y की कोई अहमियत नही।
पर वो बंदा Z, X को अहमियत दे रहा है और X की नज़र में Z की कोई अहमियत नही।”

आदमी


“आदमी कुछ नही भूलता
वो बस मिट्टी डालता है,
गड़े मुर्दे भी नही उखाड़ता
वो बस बर्दास्त कर जाता है,
उन लोगों को भी और
उनकी कही बातों को भी।
अगर वो ऐसा न करे, तो
उसकी और उन लोगों की
ज़िंदगी तबाह हो जाए।”

रंग


प्रकृति ने रंग बिखेरे
कुछ फीके कुछ शोख
मैने फीके रंग चुने
तुमने गहरे-शोख।

लड़कियां भाग रही है।


बंधनो को त्यागकर
अज्ञानता को पाटकर
लक्ष्यों को साधकर
सीमाएं लांघ रही है
देखो लड़किया भाग रही है।

खींची गई धारियों से
रेशमी जालियों से
रत्न ज़र बेड़ियों से
मुक्ति में सदियां लगा रही है
देखो लड़कियां भाग रही है।

उलझनों से रिक्त होकर
कुछ जीवन से मुक्त होकर,
बंधनों में भी तुष्ट होकर कुछ
अपना पिंजरा सजा रही है
देखो लडकियां जाग रही है।

जब रात होती है..


जब रात होती है ,खुद से भी बात होती है।
बातों ही बातों में सारी रात होती है। जब..

मैं सोया भी ना था के आंख मूंदे हुए,
गम और खुशी की बरसात होती है। जब..

बीते लम्हों की भी यादें, साथ होती हैं।
भूले बिसरे लोगों से भी बात होती हैं।जब..

जो भूल गए है हमें, भूलना चाहते है जिन्हे
उनसे भी जारी मुलाकात होती है। जब..

करवट बदलते ही थोड़ी आंख लगते ही
सुबह की लाली आंखों के साथ होती है।जब..

वादा


अबतक मैं तुमसे खफा था
और इतना था के तुम्हें
अपने सामने बर्दाश्त नही करता।
मैंने तुम्हारे घर से होकर गुजरने वाले
रास्तों पर कदम तक न रखा
और फिर तुम अचानक
खुद ही चलकर आ गए
मै सोच में पड़ गया,
एकाएक स्तब्ध सा था खड़ा
और तुमने मुस्कुरा कर
मेरा दिमाग खराब कर दिया
जैसे कुछ हुआ ही न था
पता नहीं क्यों मैंने तुम्हारी
मुस्कान को माफी समझा
और बस इतना ही काफ़ी समझा,
प्रतिउत्तर में मैने भी मुस्कुरा दिया
उस दिन तुमने कहा था के
जीतेजी मुंह तक न देखूंगी
तुम्हारे इस वादे को भी
मैं दिल से निभाता रहा
और तुमने हमेशा के तरह
यह वादा भी तोड़ दिया।

हम निकला दम


साय सी रहती थी
हमसफर कहती थी।
साथ मेरा छोड़ गई
रिश्ता वो तोड़ गई।

सपने सजाती थी
हरपल सुहाती थी।
हकीकत दिखा गई
सबक ये सीखा गई।

मन को लुभाती थी
बढ़ा सताती थी।
बेवफा हो गई, अब
नफरत सी हो गई।।

एक उम्र बाद


एक उम्र बाद आदमी
मजबूर हो जाता है।

वो सहन कर लेता है
अपने बच्चों के मनकी,
सुन लेता है हर बार
अपने जीवनसाथी की।।

एक उम्र बाद आदमी
कमजोर हो जाता है।

वो सहन कर लेता है
अपशब्द और अन्याय,
वो झेल जाता है
तिरस्कार और दुर्व्यवहार।।

एक उम्र बाद आदमी
जाग उठता है।

वो जाग उठता है
मायावी सपनों से,
और फिर यथार्थ में
उठता है नींद से।।

एक उम्र बाद आदमी
उदासीन हो जाता है।

वो हो जाता है निराश
मान हो या हो अपमान,
वो विरक्त हो जाता है
नफा हो या हो नुकसान।।

एक उम्र बाद आदमी
हार जाता है।

वो हार जाता है
समाज से, समय से,
वो मात खाता है
मन से और जीवन से।।

एक उम्र बाद आदमी
त्याग देता है

घर-परिवार
रिश्ते-नाते,
सुख और दुःख
और अंत में जीवन भी।।