आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
दु:खों से, भरा है मन
सूक्ष्म है उनका रूदन
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
किसे जाकर घाव दिखाएं?
किसके हाथों मरहम कराएं?
यहां संवेदना का,कोई अर्थ नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
सख़्त मर्द रोते नहीं
अपना दर्द जताते नहीं
इनमें सौम्यता का भाव नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
टैग: पत्थर दिल
वादा
अबतक मैं तुमसे खफा था
और इतना था के तुम्हें
अपने सामने बर्दाश्त नही करता।
मैंने तुम्हारे घर से होकर गुजरने वाले
रास्तों पर कदम तक न रखा
और फिर तुम अचानक
खुद ही चलकर आ गए
मै सोच में पड़ गया,
एकाएक स्तब्ध सा था खड़ा
और तुमने मुस्कुरा कर
मेरा दिमाग खराब कर दिया
जैसे कुछ हुआ ही न था
पता नहीं क्यों मैंने तुम्हारी
मुस्कान को माफी समझा
और बस इतना ही काफ़ी समझा,
प्रतिउत्तर में मैने भी मुस्कुरा दिया
उस दिन तुमने कहा था के
जीतेजी मुंह तक न देखूंगी
तुम्हारे इस वादे को भी
मैं दिल से निभाता रहा
और तुमने हमेशा के तरह
यह वादा भी तोड़ दिया।
दगा
(कैसा महसूस करते है आप जब कोई अपना धोखा देता है
उस समय हमें ठगा सा लगता है, हैं ना।
बस इतना कहना चाहूँगा के लगता है जैसे हम सीने से अपना दिल निकाल कर अलग ही कर दे।)
"कबीर कहते है तुम धोखा खा लो, लेकिन धोखा मत देना,क्योंकि धोखा खा लेने से कुछ भी नही खोता, लेकिन धोखा देने से सब कुछ खो जाता है।"
वैसे ज़िन्दगी में मैंने भी कितने ही धोखे खाए ,कुछ पंक्तियों में अपने विचार लिख रहा हूँ …
पीठ में माशूक की
छुरा भोंक देते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते हैं।
सपने ख्वाहिशें
दुनिया उझाड़ देते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते हैं।
हथेली पर लकीर,
तकदीर मिटा देते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते हैं।
नाज़ुक बदन को
कटीला बना लेते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते हैं।
दिल के रिश्ते को
तार तार कर देते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते है।
होंठो से हँसी आँखों से
नींदे उड़ा देते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते हैं।
बेकसूर बेगैरत
बेवज़ह बदनाम होते हैं
अक़्सर दिलबर दगा देते हैं।