जो पूर्व थे आरब्ध में
वे इतिहास हो गए हैं।
दो गज तक भीतर
अब दफन हो गए हैं।
जो बीज पूर्वजों ने थे सींचे
बढ़कर अब जड़ हो गए हैं।
और वे ओझल होकर अब
यथार्थ को भी सींच रहे हैं।
पर जड़ों ने न कभी किया मान
न ही वे बताते–फिरते पहचान।
क्यूंकि वे जानते है भली भांति
ये जो आज है वे कल होंगे।
आज जो लहलहा रहे हैं ऊपर
कल जमींदोज भी होंगे।
और ये जो अंकुर पड़े है ऊपर
वे और भी भीतर जाएंगे।
और ऊपर फल–फूल लिए
फिर से नए वृक्ष मुस्कुराएंगे।
अपनी जड़ों का हम भी
आशीष सदा पाएंगे।
उनके त्याग और संघर्षो को
कभी न हम भुलाएंगे।
अंत में उनकी तरह
हम भी जड़ हो जाएंगे।