भूरा


भूरा खड़ा चौराहे पे

झुण्ड को हैं हांकते।

काला चश्मा कैप लगा

गले में गमछा डालके।

हाथ में तीखा कढ़ा पहनें 

ओल्ड बुलैट हुंकार भरे 

दंभ भरे, गुल छर्रे उड़े 

पुड़िया थूके कश लगे।

छुटभैयों की सपोर्ट से

सत्ता की बकैती करें 

कानून को ठेंगा दिखा

प्रशासन से वो ना डरे।

मादर फादर गाली बके

असलहा बंदूक छुरी रखे

डण्डा लिए, झण्डा लिए

क्रान्ति की ज्वाला लिए,

सिर पर साफा़ बांधें

जनहित की वो बात करे।

भूरा खड़ा चौराहे पे

झुण्ड को हैं हांकते।

काला चश्मा कैप लगा

गले में गमछा डालके।

हेकड़ी


भ्रष्ट, बेईमान, हरामखाऊ, ये साले रिश्वतखोर धूर्त
ये दो कौड़ी की औकात भी न रखने वाले रईसजादे
इतने बेशर्म है और नासमझ बनते है
जैसे ये सही गलत बातों से परे है,
और अनभिज्ञ है अच्छाई और बुराई से,
इनका मानवता से कोई वास्ता नहीं है
इसीलिए इनकी हेकड़ी निकालने और
अकल ठिकाने लाने के लिए पारदर्शी कानून चाहिए।

आम खास



इज्जत न मिल रही हो मित्रा
तो युवा नेता तुम बन जाओ।
हराम की पचाना हो मित्रा
तो नीच रेखा में आ जाओ।

क्यूंकि आम होने की देश में
अब हो गई है मनाही।
घटती कमाई, बढ़ती महंगाई
अब यहां नहीं है कोई सुनवाई।

भाई मेरे कोई जुगत लगाओ
आम से खास तुम हो जाओ।
लाचार,गरीब,दलित बन जाओ
किसान,नेता, या दिवालिया हो जाओ।

कुछ न हो तो बाबा बन जाओ
या फिर सरकारी बाबू हो जाओ।
चैन से जीना, हो गया हो दुभर तो
आम से खास तुम बन जाओ।

जातिवादी धूर्त


“‘जातिवादी धूर्त अपनी बिरादरी से निकले महापुरुषों, महात्माओं और भगवानों पर इतना चीखकर हक जताते हैं के जैसे उन पर केवल उन्हीं का अधिकार हो, कॉपीराइट हो।’
फिर मजबूरन अन्य वर्गों के आस्थावान लोगों को भी यह कहना पड़ता है ,
‘लो रख लो अपने पैगंबर को, महापुरुषों को, महात्माओं को, हम इन्हें नही पूजेंगे। फिर भी उनकी अच्छाइयों को तुम हमारे हृदय से नही मिटा पाओगे।'”