है यही सुख जन्म जन्म का,
हर जन्म मिले माँ भारती।
शीश झुका चरणों में उसके,
करूं मैं निशिदिन आरती।
ले नित्य आशीष उसका,
मैं सदा चरण वंदन करूं।
जब तक प्राण रहे तन में,
मैं मातृभक्ति करता रहूं।
माँ के आंचल में रहकर मैं,
अपने भाग्य पर इतराऊं।
रहूं दूर जब ओझल उससे,
खुद को अभागा सा पाऊं।
उसकी आंखों की आभा में,
मैं अपने भाग्य को चमकाऊं।
माँ की सेवा से वंचित रहूं,
इतना भी दूर कभी न जाऊं।
Awesomes bhai sahab
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
Bahut hi sunder kavita he.
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति