बड़े-बुजुर्ग


अपने घरों में बुजुर्गों को बेहतरीन से बेहतरीन सुख-सुविधाएं दीजिए,
ताकि वे जीवन के आखिरी पड़ाव में दुनिया के उत्कर्ष का आंनद ले सकें।
आज जो तकनीक, योजनाएं, सुख-सुविधाएं हम उपयोग कर पा रहे हैं,
ये उनके द्वारा, उनके समय में किए गए त्याग और संघर्षों का परिणाम है।

ऋण


मददगारों ने मदद का विचार त्याग दिया

तो सूदखोरों ने ब्याज का धंधा चलाया।

जब हरामखोरों ने उधार न चुकाया तो

तो जरूरतमंदों को ऋण न मिल पाया।

रोते हुए मर्द



आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

दु:खों से, भरा है मन
सूक्ष्म है उनका रूदन
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

किसे जाकर घाव दिखाएं?
किसके हाथों मरहम कराएं?
यहां संवेदना का,कोई अर्थ नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

सख़्त मर्द रोते नहीं
अपना दर्द जताते नहीं
इनमें सौम्यता का भाव नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

मैं नही हूं वो


मैं नहीं हूं वो जिसे देखा था तुमने
जिसने भी देखा पिंजरा देखा
भीतर पंछी को देख न पाया कोई।

मैं नही हूं वो जिस से बतियाया तुमने
जो भी बतियाया पिंजरे से बतियाया
भीतर पंछी से बतियाया न कोई।

मैं नहीं हूं वो जिसे छुआ था तुमने
जिसने भी छुआ बस पिंजरा छुआ
भीतर पंछी को छु न पाया कोई।

मैं नही हूं वो जिसे पाया था तुमने
जिसने भी पाया बस पिंजरा पाया
भीतर पंछी को पा न पाया कोई।

नकारात्मक 2


वक्त गुजर रहा है
हर पल बदल रहा है।
दुनियाभर की झंझट में
जीवन छिन रहा है।

कुछ बीती बातें है
जो बासी नहीं होती।
कुछ पुरानी यादें है
जो बूढ़ी नही होती।

कितनी ख्वाहिशें हैं?
के पूरी ही नहीं होती।
कितना भी समेट लो
संतुष्टी नही होती।

मुर्गे के बाग देने से
सवेरा नही हो जाता
चाह लेने से तेरे सब
तेरा नही हो जाता।

जुगनु के चमकने से
अंधियारी कम नहीं होती।
कितनी भी कोशिश कर
मुसीबतें कम नहीं होती।

एक छोटा सी जिंदगी में
ख्वाहिशे की बड़ी बड़ी।
दुनियाभर की हड़बड़ी में
और आफतें, खड़ी करी।

सशक्तिकरण


नारीवादी बने कुछ धूर्त
समाज पर हैं भौंक रहे।

उल जुलूल अपने
विचारों को हैं थोप रहे।

फैशन के नाम पर
नग्नता हैं परोस रहे।

समता के नाम पर
चरित्र ये बिगाड़ रहे।

कम वेतनो में स्त्रियों से
काम ये करा रहे।

कहीं भूखे भेड़िए बन
जिस्म को है नोच रहे।

कहीं समाजसेवी बन
पीड़िता पे हाथ फेर रहे।

कहीं किसी अबला की
देह को दबोच रहे।

नारी के नारीत्व की
सीमाएं ये लांघ रहे।

पुरुषों के पुरुषत्व
को हैं ये लजा रहे।

कुछ वर्ग


कुछ वर्गों ने कहा हम उच्च है ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम नीच हो ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम अछूत हो ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम दलित हो ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम
दबे-कुचले शोषित हो ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम
पीड़ित हो सताए गए हो ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम्हे
आवश्यकता है आरक्षण की ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

कुछ वर्गों ने कहा तुम्हें
जरूरत है मुफ़्त राशन की ,
और कुछ वर्गों ने ये बात मान ली।

बैरी


अगर मैं दूसरों के द्वारा मेरे प्रति किए गए दुर्व्यवहार को याद रखूं , उन बातों को दिल से लगाए रखूं तो मेरा जीवन दूभर हो जाएगा और तो और सभी अपने-पराए मेरे बैरी हो जाएंगे।

मिथ्या


कुछ कलुषित छींट
जो उछाले थे चंद लोगो ने।
उजली सफेद दीवार पर, तुमने
देखा भी तो क्या देखा?

रोपने को थे पुष्पित पौध
भलाई के बीज, बोने को थे।
ये जो बगलों में कांटे उग आए हैं
तुमने बोया भी तो क्या बोया?

नश्वर जीव-जगत में,
दुखद अंत है, जग मिथ्या है।
इन झंझटों में पड़कर तुमने
पाया ही तो क्या पाया?

जातिवादी धूर्त


“‘जातिवादी धूर्त अपनी बिरादरी से निकले महापुरुषों, महात्माओं और भगवानों पर इतना चीखकर हक जताते हैं के जैसे उन पर केवल उन्हीं का अधिकार हो, कॉपीराइट हो।’
फिर मजबूरन अन्य वर्गों के आस्थावान लोगों को भी यह कहना पड़ता है ,
‘लो रख लो अपने पैगंबर को, महापुरुषों को, महात्माओं को, हम इन्हें नही पूजेंगे। फिर भी उनकी अच्छाइयों को तुम हमारे हृदय से नही मिटा पाओगे।'”