भूरा


भूरा खड़ा चौराहे पे

झुण्ड को हैं हांकते।

काला चश्मा कैप लगा

गले में गमछा डालके।

हाथ में तीखा कढ़ा पहनें 

ओल्ड बुलैट हुंकार भरे 

दंभ भरे, गुल छर्रे उड़े 

पुड़िया थूके कश लगे।

छुटभैयों की सपोर्ट से

सत्ता की बकैती करें 

कानून को ठेंगा दिखा

प्रशासन से वो ना डरे।

मादर फादर गाली बके

असलहा बंदूक छुरी रखे

डण्डा लिए, झण्डा लिए

क्रान्ति की ज्वाला लिए,

सिर पर साफा़ बांधें

जनहित की वो बात करे।

भूरा खड़ा चौराहे पे

झुण्ड को हैं हांकते।

काला चश्मा कैप लगा

गले में गमछा डालके।

पुरुष की अभिलाषा


स्त्री आगे बढ़ो ऊंचा उड़ो
पर चूल्हा चौका झाड़ू करो।

बेशक चांद पर चले जाओ
पर पहले मेरी चाय बनाओ।

सितारों सा भाग्य चमकाओ
श्रृंगार करो और हमें रिझाओं।

बेशक स्त्री तुम दफ्तर जाओ
आकर खाना भी पकाओ।

पर नए दौर का फैशन करो
खिंची हदों को पार मत करो।

दुनिया भर में नाम कमाओ
पर मेरी पगार से घर चलाओ।

भवबंधन से ऊपर उठ जाओ
गृहस्थी का मेरे बोझ उठाओ।

स्त्री आगे बढ़ो ऊंचा उड़ों
पर मेरे शर्तों पर भी जियो।

नव युवा उग आए हैं।


नई नई कोंपल से फूटे
लेके घूम रहे दिल टूटे
नाज़ुक नाज़ुक डंडीयों से
नव युवा उग आए हैं।

ऊबड़ खाबड़ गाल लिए
बिखरे बिखरे बाल लिए
हाथ फिराए बार बार
गंजो को जैसे लजा रहे है।

फटफटी का कान मरोड़े
पड़ोसियों के कान फोड़े
फूहड़ गाने बजा बजा के
ज़ोर ठहाके लगा रहे हैं।

वेस्टर्न को फॉलो करते
ट्रेडिशन को भुला रहे
ऊटपटांग फैशन करके
स्टाइल मारे जा रहे है।

कुंभकर्ण सी नींद भरे
कुश्ती, कसरत से डरे
जिम जावे , पोज मारे
रोज छः पैक बना रहे हैं।

बात बात में देवे गाली
नशे से हो रहा सीना खाली
कार्बन मोनो आक्साइड से
दम्म भर सीना फुला रहे है।

दुर्बल होती जाए काया
जेब को नही भाए माया
नौकरी छोकरी की टैंशन में,
जमाने भर की लाते खा रहे हैं।

स्टेडी, जीके, करेंट, अफेयर
दुनिया भर से है ये अवेयर
चाय सुट्टा टपरियों पर
टेंशन का धुआं उड़ा रहे हैं।

जातिवादी धूर्त


“‘जातिवादी धूर्त अपनी बिरादरी से निकले महापुरुषों, महात्माओं और भगवानों पर इतना चीखकर हक जताते हैं के जैसे उन पर केवल उन्हीं का अधिकार हो, कॉपीराइट हो।’
फिर मजबूरन अन्य वर्गों के आस्थावान लोगों को भी यह कहना पड़ता है ,
‘लो रख लो अपने पैगंबर को, महापुरुषों को, महात्माओं को, हम इन्हें नही पूजेंगे। फिर भी उनकी अच्छाइयों को तुम हमारे हृदय से नही मिटा पाओगे।'”

आकलन


कुछ महा मूर्ख जाति–वर्ग, धर्म और आर्थिक संपन्नता के आधार पर व्यक्तित्व का आकलन करते हैं, इन्हें जितना ज़्यादा ऊंचा दिखाओगे वे तुम्हें उतना ज़्यादा मान–सम्मान देंगे।