हेकड़ी


भ्रष्ट, बेईमान, हरामखाऊ, ये साले रिश्वतखोर धूर्त
ये दो कौड़ी की औकात भी न रखने वाले रईसजादे
इतने बेशर्म है और नासमझ बनते है
जैसे ये सही गलत बातों से परे है,
और अनभिज्ञ है अच्छाई और बुराई से,
इनका मानवता से कोई वास्ता नहीं है
इसीलिए इनकी हेकड़ी निकालने और
अकल ठिकाने लाने के लिए पारदर्शी कानून चाहिए।

नकारात्मक 2


वक्त गुजर रहा है
हर पल बदल रहा है।
दुनियाभर की झंझट में
जीवन छिन रहा है।

कुछ बीती बातें है
जो बासी नहीं होती।
कुछ पुरानी यादें है
जो बूढ़ी नही होती।

कितनी ख्वाहिशें हैं?
के पूरी ही नहीं होती।
कितना भी समेट लो
संतुष्टी नही होती।

मुर्गे के बाग देने से
सवेरा नही हो जाता
चाह लेने से तेरे सब
तेरा नही हो जाता।

जुगनु के चमकने से
अंधियारी कम नहीं होती।
कितनी भी कोशिश कर
मुसीबतें कम नहीं होती।

एक छोटा सी जिंदगी में
ख्वाहिशे की बड़ी बड़ी।
दुनियाभर की हड़बड़ी में
और आफतें, खड़ी करी।

पुरुष की अभिलाषा


स्त्री आगे बढ़ो ऊंचा उड़ो
पर चूल्हा चौका झाड़ू करो।

बेशक चांद पर चले जाओ
पर पहले मेरी चाय बनाओ।

सितारों सा भाग्य चमकाओ
श्रृंगार करो और हमें रिझाओं।

बेशक स्त्री तुम दफ्तर जाओ
आकर खाना भी पकाओ।

पर नए दौर का फैशन करो
खिंची हदों को पार मत करो।

दुनिया भर में नाम कमाओ
पर मेरी पगार से घर चलाओ।

भवबंधन से ऊपर उठ जाओ
गृहस्थी का मेरे बोझ उठाओ।

स्त्री आगे बढ़ो ऊंचा उड़ों
पर मेरे शर्तों पर भी जियो।

कहाकही


नदी कहती, मैं कल कल ही बहती
गर तुमने जो मुझको बांधा न होता।

पर्वत कहता, मैं अचल ही रहता
गर मुझपर रास्तों को तराशा न होता।

हवा कहती, मैं शीतल ही बहती
गर मुझको मलीन किया न होता।

जंगल कहते, हम घनेरे ही रहते
गर तुमने वृक्षों को काटा न होता।

सागर कहता, मैं उग्र न होता
गर गंदगी का बोझ डाला न होता।

मानवता कहती, हम सब एक है
गर कुछ दानवों ने बांटा न होता।

वसुधा कहती दुनिया अमंगल ही होती
गर मैंने इसे अमृत से सींचा न होता।

स्त्री कहती ये दुनिया खंडहर ही होती
गर गृहस्थी का बोझ हमने उठाया न होता।