रोते हुए मर्द



आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

दु:खों से, भरा है मन
सूक्ष्म है उनका रूदन
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

किसे जाकर घाव दिखाएं?
किसके हाथों मरहम कराएं?
यहां संवेदना का,कोई अर्थ नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

सख़्त मर्द रोते नहीं
अपना दर्द जताते नहीं
इनमें सौम्यता का भाव नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।

मैं नही हूं वो


मैं नहीं हूं वो जिसे देखा था तुमने
जिसने भी देखा पिंजरा देखा
भीतर पंछी को देख न पाया कोई।

मैं नही हूं वो जिस से बतियाया तुमने
जो भी बतियाया पिंजरे से बतियाया
भीतर पंछी से बतियाया न कोई।

मैं नहीं हूं वो जिसे छुआ था तुमने
जिसने भी छुआ बस पिंजरा छुआ
भीतर पंछी को छु न पाया कोई।

मैं नही हूं वो जिसे पाया था तुमने
जिसने भी पाया बस पिंजरा पाया
भीतर पंछी को पा न पाया कोई।

नकारात्मक 2


वक्त गुजर रहा है
हर पल बदल रहा है।
दुनियाभर की झंझट में
जीवन छिन रहा है।

कुछ बीती बातें है
जो बासी नहीं होती।
कुछ पुरानी यादें है
जो बूढ़ी नही होती।

कितनी ख्वाहिशें हैं?
के पूरी ही नहीं होती।
कितना भी समेट लो
संतुष्टी नही होती।

मुर्गे के बाग देने से
सवेरा नही हो जाता
चाह लेने से तेरे सब
तेरा नही हो जाता।

जुगनु के चमकने से
अंधियारी कम नहीं होती।
कितनी भी कोशिश कर
मुसीबतें कम नहीं होती।

एक छोटा सी जिंदगी में
ख्वाहिशे की बड़ी बड़ी।
दुनियाभर की हड़बड़ी में
और आफतें, खड़ी करी।

इक तेरा ही आसरा।


जिंदगी की कश्ती को
न मिला किनारा,
इक तू ही है बस
इक तेरा ही आसरा।

चले आओ इस डगर
हाथ थाम लो जरा,
मुझे तो है इंतेजार
इक तेरा ही आसरा।

बिखर न जाऊं कहीं
समेट लो ज़रा,
उदास मन को मेरे
इक तेरा ही आसरा।

गमों की धूप में रहा
सुकुन की तलाश में,
इश्क की छाव में
इक तेरा ही आसरा।

बिछड़कर तुझसे
चुप हूं खामोश हूं,
बेजुबां होने से बचा
इक तेरा ही आसरा।

मिथ्या


कुछ कलुषित छींट
जो उछाले थे चंद लोगो ने।
उजली सफेद दीवार पर, तुमने
देखा भी तो क्या देखा?

रोपने को थे पुष्पित पौध
भलाई के बीज, बोने को थे।
ये जो बगलों में कांटे उग आए हैं
तुमने बोया भी तो क्या बोया?

नश्वर जीव-जगत में,
दुखद अंत है, जग मिथ्या है।
इन झंझटों में पड़कर तुमने
पाया ही तो क्या पाया?

मानवता


कुछ नैसर्गिक जगहों को बस खाली छोड़ दो
न ही बनाओ वहां कोई धरम स्थल,
न ही उसे किसी महापुरुष का नाम दो।
बस उस जगह को एकांत रहने दो
ताकि मानवता वहां जा सकें, खुदमें झांकने
स्वतन्त्र, निर्भीक और बेरोक–टोक।

जीवन


जीवन के दो पहलू
आस और निरास।
पल–पल खुशियां
पल–पल उदास।

रेस


आदमी चाहे तुम जो भी हो
जो भी हो ये पढ़ने वाला
इस वक्त गम में है या खुशी में
ये वक्त तो हैं गुज़रने वाला।

जो टिका है वो जीता है
जो डिगा है वो हारा
हालातों से जो न घबराया
मुट्ठी में उसकी जग सारा।

लिखा है तकदीरों में
यहां सबका आना जाना
ज़िंदगी है कोई रेस नहीं
न ही कोई जीतने वाला।