अपने घरों में बुजुर्गों को बेहतरीन से बेहतरीन सुख-सुविधाएं दीजिए,
ताकि वे जीवन के आखिरी पड़ाव में दुनिया के उत्कर्ष का आंनद ले सकें।
आज जो तकनीक, योजनाएं, सुख-सुविधाएं हम उपयोग कर पा रहे हैं,
ये उनके द्वारा, उनके समय में किए गए त्याग और संघर्षों का परिणाम है।
श्रेणी: हिन्दीपंक्तियां
भूरा
भूरा खड़ा चौराहे पे
झुण्ड को हैं हांकते।
काला चश्मा कैप लगा
गले में गमछा डालके।
हाथ में तीखा कढ़ा पहनें
ओल्ड बुलैट हुंकार भरे
दंभ भरे, गुल छर्रे उड़े
पुड़िया थूके कश लगे।
छुटभैयों की सपोर्ट से
सत्ता की बकैती करें
कानून को ठेंगा दिखा
प्रशासन से वो ना डरे।
मादर फादर गाली बके
असलहा बंदूक छुरी रखे
डण्डा लिए, झण्डा लिए
क्रान्ति की ज्वाला लिए,
सिर पर साफा़ बांधें
जनहित की वो बात करे।
भूरा खड़ा चौराहे पे
झुण्ड को हैं हांकते।
काला चश्मा कैप लगा
गले में गमछा डालके।
ऋण
मददगारों ने मदद का विचार त्याग दिया
तो सूदखोरों ने ब्याज का धंधा चलाया।
जब हरामखोरों ने उधार न चुकाया तो
तो जरूरतमंदों को ऋण न मिल पाया।
माँ भारती
है यही सुख जन्म जन्म का,
हर जन्म मिले माँ भारती।
शीश झुका चरणों में उसके,
करूं मैं निशिदिन आरती।
ले नित्य आशीष उसका,
मैं सदा चरण वंदन करूं।
जब तक प्राण रहे तन में,
मैं मातृभक्ति करता रहूं।
माँ के आंचल में रहकर मैं,
अपने भाग्य पर इतराऊं।
रहूं दूर जब ओझल उससे,
खुद को अभागा सा पाऊं।
उसकी आंखों की आभा में,
मैं अपने भाग्य को चमकाऊं।
माँ की सेवा से वंचित रहूं,
इतना भी दूर कभी न जाऊं।
हेकड़ी
भ्रष्ट, बेईमान, हरामखाऊ, ये साले रिश्वतखोर धूर्त
ये दो कौड़ी की औकात भी न रखने वाले रईसजादे
इतने बेशर्म है और नासमझ बनते है
जैसे ये सही गलत बातों से परे है,
और अनभिज्ञ है अच्छाई और बुराई से,
इनका मानवता से कोई वास्ता नहीं है
इसीलिए इनकी हेकड़ी निकालने और
अकल ठिकाने लाने के लिए पारदर्शी कानून चाहिए।
रोते हुए मर्द
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
दु:खों से, भरा है मन
सूक्ष्म है उनका रूदन
आंसू सूखे, तो निकलते नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
किसे जाकर घाव दिखाएं?
किसके हाथों मरहम कराएं?
यहां संवेदना का,कोई अर्थ नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
सख़्त मर्द रोते नहीं
अपना दर्द जताते नहीं
इनमें सौम्यता का भाव नहीं
रोते हुए मर्द
सुने हैं, देखें तो नहीं।
तलाश
फिरते हैं चमन में खुशबू तलाशते
नजानें वो कौन सी बहारों में होगी।
दिखती है जितनी आसान ज़िंदगी
उनके बगैर फिर गवारा न होगी।
गुज़र रहा है वक्त उनकी तलाश में
बीत रही हर घड़ी मौसम बहार की।
अंधेरों में, कहां आसां हैं? जिंदगी
आने से उनके ये रोशन तो होगी।
जीवन है इक खेल
स्टेडियम में (समाज में)
दर्शकगण (आपके करीबी)
आनंद ले रहे है,
तालियां बजा रहे है
और उत्सुक होकर
प्रतीक्षा कर रहे हैं
खिलाड़ी के (आपके)
खेल में (जीवन में)
प्रदर्शन (गिरने-संभलने) का।
मैं नही हूं वो
मैं नहीं हूं वो जिसे देखा था तुमने
जिसने भी देखा पिंजरा देखा
भीतर पंछी को देख न पाया कोई।
मैं नही हूं वो जिस से बतियाया तुमने
जो भी बतियाया पिंजरे से बतियाया
भीतर पंछी से बतियाया न कोई।
मैं नहीं हूं वो जिसे छुआ था तुमने
जिसने भी छुआ बस पिंजरा छुआ
भीतर पंछी को छु न पाया कोई।
मैं नही हूं वो जिसे पाया था तुमने
जिसने भी पाया बस पिंजरा पाया
भीतर पंछी को पा न पाया कोई।
नकारात्मक 2
वक्त गुजर रहा है
हर पल बदल रहा है।
दुनियाभर की झंझट में
जीवन छिन रहा है।
कुछ बीती बातें है
जो बासी नहीं होती।
कुछ पुरानी यादें है
जो बूढ़ी नही होती।
कितनी ख्वाहिशें हैं?
के पूरी ही नहीं होती।
कितना भी समेट लो
संतुष्टी नही होती।
मुर्गे के बाग देने से
सवेरा नही हो जाता
चाह लेने से तेरे सब
तेरा नही हो जाता।
जुगनु के चमकने से
अंधियारी कम नहीं होती।
कितनी भी कोशिश कर
मुसीबतें कम नहीं होती।
एक छोटा सी जिंदगी में
ख्वाहिशे की बड़ी बड़ी।
दुनियाभर की हड़बड़ी में
और आफतें, खड़ी करी।